तुम्हें याद है क्या कि तुम किसी अनजान की कविता सुना रहे थे उस रात ..शायद तुमको तो मालूम था तब कि कविता किसकी थी .. मैं तो बस सुन रही थी ...सुनना मेरा काम था और सुनाना तुम्हारा .. तुम तो कविता में खोये थे और मैं, मैं तुम में ..
तुम बोले जा रहे थे --
कुछ विकल जगारों की लाली
कुछ अंजन की रेखा काली
उषा के अरुण झरोखे में
जैसे हो काली रात बसी
दो नयनों में बरसात बसी ..
बिखरी बिखरी रूखी पलकें
भीगी भीगी भारी पलकें
प्राणों में कोई पीर बसी
मन में है कोई बात बसी
दो नयनों में बरसात बसी ...
तुम सुना रहे थे ..उधर बाहर बारिश का शोर था और इधर अंदर मेरी आँखों में भी बरसात का जोर था .. तुम इन सबसे अनभिज्ञ पूरे मनोयोग से किताब पर मन लगाए हुवे थे और यह बेदर्द कविता ज्यूं मेरे ही हाल को बयां कर रही थी ...यही वह कविता थी न जिसने तुमको मुझसे दूर कर दिया था| साथ रह कर भी हम तुम कहाँ साथ थे ….क्या तुम्हें मालूम है कि आज भी तुम यह कविता मेरे लिए गा सकते हो क्योंकि कुछ मेरा हाल ऐसा ही हो कर रह गया ... और मैं भी गुनगुना रही हूँ एक कविता की पंक्तियाँ
अब छूटता नहीं छुडाये
रंग गया ह्रदय है ऐसा
आंसूं से धुला निखरता
यह रंग अनोखा कैसा |
कामना कला की विकसी
कमनीय मूर्ति बन तेरी
खींचती है ह्रदय पटल पर
अभिलाषा बन कर मेरी |....
अब तो मैं भी जानने लगी हूँ कि यह कविता किस ने लिखी है क्यूंकि अब मुझे भी कविताओं से प्रेम होने लगा है|......... रंग गयी हूँ रंग में तेरे .....और रॅाक स्टार मूवी के गाने के बोल फूट रहे है --
रंगरेज़ा रंगरेज़ा रंग मेरा तन मेरा मन
ले ले रंगाई चाहे तन चाहे मन
रंगरेज़ा रंगरेज़ा रंग मेरा तन मेरा मन
ले ले रंगाई चाहे तन चाहे मन ..