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Sunday, December 4, 2011

तुम, मैं और वह कविता

 

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तुम्हें याद है क्या कि तुम किसी अनजान की कविता सुना रहे थे उस रात ..शायद तुमको तो  मालूम था तब कि कविता किसकी थी .. मैं तो  बस सुन रही थी ...सुनना मेरा काम था और सुनाना तुम्हारा  .. तुम  तो कविता में खोये थे और मैं, मैं  तुम  में ..

तुम  बोले जा रहे थे --

कुछ विकल जगारों की लाली

कुछ अंजन  की रेखा काली

उषा के अरुण झरोखे में

जैसे हो काली रात बसी

दो नयनों में बरसात बसी  ..

बिखरी बिखरी रूखी पलकें

भीगी भीगी भारी पलकें

प्राणों में कोई पीर बसी

मन में है कोई बात बसी

दो नयनों में बरसात बसी ...

         तुम  सुना रहे थे ..उधर बाहर बारिश का शोर था और इधर अंदर मेरी आँखों में भी बरसात का जोर था .. तुम  इन सबसे अनभिज्ञ पूरे मनोयोग से किताब पर मन लगाए हुवे थे और यह  बेदर्द कविता ज्यूं  मेरे ही हाल को बयां कर रही थी ...यही वह कविता थी न जिसने तुमको  मुझसे दूर कर दिया था| साथ रह कर भी हम तुम कहाँ साथ थे ….क्या तुम्हें मालूम है कि आज भी तुम यह कविता मेरे लिए गा सकते हो क्योंकि कुछ मेरा हाल ऐसा ही हो कर रह गया ... और मैं भी गुनगुना रही हूँ एक कविता की पंक्तियाँ

अब छूटता नहीं छुडाये

रंग गया ह्रदय है ऐसा

आंसूं से धुला निखरता

यह रंग अनोखा कैसा |

कामना कला की विकसी

कमनीय मूर्ति बन तेरी

खींचती है ह्रदय पटल पर

अभिलाषा बन कर मेरी |....

                              

                      अब तो मैं भी जानने लगी हूँ कि यह कविता किस ने लिखी है क्यूंकि अब मुझे भी कविताओं से प्रेम होने लगा है|......... रंग गयी हूँ रंग में तेरे .....और रॅाक स्टार मूवी के गाने के बोल फूट रहे है --

 

रंगरेज़ा रंगरेज़ा रंग मेरा तन मेरा मन

ले ले रंगाई चाहे तन चाहे मन

रंगरेज़ा रंगरेज़ा रंग मेरा तन मेरा मन

ले ले रंगाई चाहे तन चाहे मन ..

Tuesday, November 22, 2011

मेरा प्रेम मेरी चाय - डॉ नूतन गैरोला

                                                                                                                                                                    
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तू कड़क
तू है मीठी
अलसाई सी है हर सुबह
बिन तेरे .......
बिन तेरे
एक प्यास अनबुझी सी
हर शाम अधूरी सी ......
एक तलब
लबों तक आ कर बूझे
अंदाज है शौक़ीनों का
आवाज हैं चुस्की की  .....

 

डॉ नूतन गैरोला

 

प्रकृति से तो सभी प्रेम करते हैं पर व्यक्तिक तौर पर प्रेम हम किस से करते है - व्यक्ति विशेष, वस्तु विशेष, आदत विशेष, या शौक विशेष से|   और चाय के प्रति मेरा अगाध प्रेम है … वैसे भी हम पहाड़ियों को तो ठण्ड में राहत देने के लिए चाय एक शौक ही नहीं एक आदत बन जाती है जिसके बिना अधूरा अधूरा सा लगता है..


                        

Tuesday, September 27, 2011

असंतुलन - डॉ नूतन डिमरी गैरोला

 


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मेरी धरती मेरा आसमां

चरणों पे तेरे मैंने शीश झुका लिया था

फिसली मैं अगर तो भी  गिरी नहीं

गिरने से तुने मुझे बचा लिया था

धरती ने मुझे गोद में थामा

आकाश ने मुझे ऊँगली पकड़ उठा लिया था|

.

.

ये मेरे जमीं आसमां  थे ...पर आज सोचती हूँ मैं कहाँ ....

.

.

मैं अपनी धरती पर खड़ी हूँ पर आसमां मेरा नहीं...

आसमां को तलाश लेती हूँ तो वहाँ मेरी धरती नहीं ...

इस असंतुलन में झूलते झूलते

मैं खुद को निहारती हूँ तो पाती हूँ, मैं जो हूँ वो ही मैं नहीं....

.

.

खो दिया है मैंने खुद को..... 

.

.

दुनियादारी की जिम्मेदारियों में ...या सवारने में अपनी रूचियाँ |

जिम्मेदारियां अपनों की अपनी जिम्मेदारियों की ..

दौड़म दौड़, भागमभाग जाने .. जिंदगी की गाड़ी सुस्ताना चाहती है, रुकना चाहती है  ..लेकिन मंथर गति होते ही ठेलम ठेल ..

और रूचि, अभिलाषा भी अधिकार ज़माने लगी है ... अपने प्रति जिम्मेदारियां का अहसास जगाने लगी हैं .....

.

.

सोचती हूँ इन सब को छोड़ कर शांति की खोज में चले जाऊं ....

.

.

शांति तो बाहर भी होगी कहीं  और है मन के अंदर भी

अब इस शान्ति की खोज में कहाँ जाऊं ...

क्या बता सकेगा कोई .. ..कहाँ जाऊं किधर जाऊं .... 

.

.…

Thursday, August 4, 2011

हम सब एक हैं ….डॉ नूतन गैरोला

Religions-in-India1 

 

तुमने कभी इंसान की हड्डी को देखा है
कही भी जा दिखेगी हड्डी होती सिर्फ सफ़ेद है
क्या बोलती है वो
मैं हिंदू हूँ, मै मुस्लिम हूँ या कि ईसाई और सिख?


कभी पानी ना मिलेगा तो जानोगे प्यास होती है क्या?
पानी मांगेगा हिंदू , मांगेगा मुसलमान, मांगेगा ईसाई और सिख|

जख्म होगा देह में तो बहेगा खून सबका
खून का रंग होता है लाल
हिंदू में, मुसलमां में, ईसाई में और सिख में |

जाना है तुमने क्या, भाई भाई का खून कभी कभी
आपस में मिलता नहीं, रक्तदान के लिए आता है जो
वो अनजान भाई होता है कोई हिंदू, कोई मुसलमान, कोई ईसाई या सिख |

कभी जाना है तुमने धर्म होता है क्या पूजा होती है क्या
सत्मार्ग दिखाये धर्म
और भावनाये पूजा में होती हैं-
मानवता के कल्याण की, प्रेम की सौहार्द की
सत्मार्ग दिखाए चाहे धर्म हो हिंदू या कि मुस्लिम या ईसाई या सिख|
फिर ये नफरत की दीवारें क्यों, लहू लहू का प्यासा क्यों |

नूतन गैरोला .. ४ / अगस्त / २०११ १० :५२

 

अभी लिखी और पोस्ट की है …. बाद में एडिटिंग होगी.. मुस्‍कान

Wednesday, August 3, 2011

हम सब एक हैं ….डॉ नूतन गैरोला

Religions-in-India1 

 

तुमने कभी इंसान की हड्डी को देखा है
कही भी जा दिखेगी हड्डी होती सिर्फ सफ़ेद है
क्या बोलती है वो
मैं हिंदू हूँ, मै मुस्लिम हूँ या कि ईसाई और सिख?


कभी पानी ना मिलेगा तो जानोगे प्यास होती है क्या?
पानी मांगेगा हिंदू , मांगेगा मुसलमान, मांगेगा ईसाई और सिख|

जख्म होगा देह में तो बहेगा खून सबका
खून का रंग होता है लाल
हिंदू में, मुसलमां में, ईसाई में और सिख में |

जाना है तुमने क्या, भाई भाई का खून कभी कभी
आपस मिलता नहीं, रक्तदान के लिए आता है जो
वो अनजान भाई होता है कोई हिंदू, कोई मुसलमान, कोई ईसाई या सिख |

कभी जाना है तुमने धर्म होता है क्या पूजा होती है क्या
सत्मार्ग दिखाये धर्म
और भावनाये पूजा में होती हैं-
मानवता के कल्याण की, प्रेम की सौहाद्र की
सत्मार्ग दिखाए चाहे धर्म हो हिंदू या कि मुस्लिम या ईसाई या सिख|
फिर ये नफरत की दीवारें क्यों, लहू लहू का प्यासा क्यों |

नूतन गैरोला .. ४ / अगस्त / २०११ १० :५२

 

अभी लिखी और पोस्ट की है …. बाद में एडिटिंग होगी.. मुस्‍कान

Saturday, July 9, 2011

दस जुलाई को खुशियाँ --

आज १० जुलाई को हमारे घर में खुशियां - बड़ी बेटी के रूप में मैं पैदा हुई और आज के ही दिन छोटे भाईसाहब की शादी हुई मतलब घर में छोटी बहु आई - है ना कितनी खुशी की बात |

फेसबुक में हमारी मित्र मंडली के मित्र श्री प्रतिबिम्ब जी ने मित्रमंडली की तरफ से भईया भाभी जी और मेरे चित्रों के द्वारा एक सुन्दर शुभकामना कार्ड इस तरह भेजा जिस पर सभी मित्रों ने हमें बधाई और शुभकामनायें दी ..

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१० जुलाई २०११ [ दो शुभ अवसर एक साथ ]
मनमोहन जी एवं इंदिरा जी आप दोनों को शादी की सालगिरह पर बहुत बहुत मुबारकबाद एवं शुभकामनायें !!! साथ ही नूतन जी का जन्मदिन है - नूतन जी आप के जन्मदिन पर ढेरो बधाई एवं शुभकामनायें!!
[मनमोहन जी नूतन जी आप दोनों भाई बहनो एवं परिवार के लिए हमारी मंगलकमनायें है इस शुभ अवसर पर - खुशी, स्वस्थता, सफलता और मुस्कराहट का सदैव साथ बना रहे ]
- फेसबुक मित्र मंडली

आज तो मै चली खुशियां मनाने …..

Friday, June 24, 2011

कमल और कीचड़ - डॉ नूतन गैरोला

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मौन हैं सब
खामोश
कीचड़ से सने हाथ
और कमर तक दलदल में फंसे हुवे
उन्होंने नवाजा था कमल को
पूजा था जिस जगह को
वो तो उपवन था कमल का
पंखुडियां नित रंग भरने लगी,
इठलाने लगी
प्रशंसक और नजदीक जाने लगे
ध्यान न था गजदन्त सा रूप
खाने के कुछ दिखाने के कुछ |  
उलझने लगे इंद्रजाल के छद्म में
रूप के मायाजाल में
फंसने लगे, डूबने लगे|
यूं तो शीशे के घर उनके नहीं,
पर अब इस धोखे पर
पत्थर उठायें नहीं जाते  
क्यूंकि कीचड़ मुँह पर उछलता है|

Monday, June 6, 2011

एक रेलगाड़ी और हम - डॉ नूतन गैरोला

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मैंने देखा था इक सपना
एक रेलगाड़ी और हम
पिताजी टिकट ले कर आते हुवे
और लोग स्टेशन का पता पूछते हुवे 
इतने  में रेल चल पड़ी थी
खड़े रह गए थे वो(पिता जी ) अकेले स्टेशन में
बेहद घबराये छटपटाये थे 
और याद नहीं घर के लोग किधर बिखर गए थे
रेलगाडी दौड़ रही थी सिटी बजाती
और उस डब्बे में थे तुम और मैं
और कुछ भीड़ सी औरतों की, मर्दों की,
भजन गाती|
कुछ अनचाहे चेहरे, क्रूर से, मेरे पास से गुजरे थे
और तुम ने समेट लिया था मुझे,
छुपा लिया था मुझको  खुद के आगोश में
स्नेह भरे उस आलिंगन में फेर लिया था मेरे सर पे हाथ
कितना  भा रहा था मुझको तेरा मेरा साथ
भीग रहा था मन और तन, झूम स्नेह की बरखा आई
इतने  में एक आवाज तुम्हारी पगी प्रेम में  आई
जो बोला  तुमने भी न  था, न मैंने कानों से सुनी
वो आवाज मेरी आँखों ने मन-मस्तिष्क से पढ़ी  
तुमने कहा मजबूत बनों खुद, ये साथ न रहे कल तो?
और तुम्हारे चेहरे पर चिंता की लकीरें खिंच आयीं थी |
जाने क्यों वक़्त रेल की गति से तेज भागता जाने कहाँ रिस गया
जाने क्यों मैं नीचे की बर्थ पे बैठी रही
और तुम ऊपर की बर्थ में कुछ परेशान सोच में |
रेल धीरे.. धीरे... धीरे.... और रुकने लगी
साथ भजन की आवाजे तेज तेज तेजतर गूंजने लगी
जाने क्यों में रेल से नीचे उतर आयी कानों में लिए भजन की आवाज
रेल का धुवां और सिटी की आवाज जब दूर से कानों पे आई
तो जाना मैं अकेले स्टेशन में थी
और वह रेल तुम्हें ले कर द्रुत गति से चल दी थी आगे कहाँ, जाने किस जहां
तुम्हारे वियोग में मैं हाथ मलती खड़ी बहुत पछताई
और टूट गया था वो सपना, था वो कुछ पल का साथ
मैं भीगी थी पसीने से और बीत रही थी रात
आँसू के सैलाब ने मुझको घेरा था
मैंने जाना सब कुछ देखा जैसा, वैसा ही तो था
क्यों पिताजी की आँखों में सदा रहती थी नमी
हमारी खुशियों की खातिर सदा मुस्कुरा रहे थे वो
जब कि उनको भी बेहद कचोट रही थी कमी...
तब चीख के मैंने उन रात के सन्नाटों को पुकारा था...
उस से पूछा था
तुम कहीं भी फ़ैल जाते हो एक सुनसान कमरे से एक भीड़ में
अँधेरे से उजाले में, धरती-पाताल से आकाश और दूर शून्य में
और वो तारा टिमटिमा रहा है जहाँ, वहाँ भी तो तुम रहते हो
फिर तुमने देखा तो होगा उनको .. बोलो बोलो मेरी माँ है कहाँ ..
सन्नाटा भी था मौन और फिर हवा से कुछ पत्तों के गिरने की आवाज थी..
जैसे कह रहें हों  कि जो आता है जग में वो एक दिन मिट्टी में मिल जाता है..
तुम मिट्टी में मिल गयी ये स्वीकार नहीं मुझको
फिर वो रेल कहाँ ले गयी तुमको
किस परालोकिक संसार में
पुकारती हूँ तुमको फिर भी इस दैहिक संसार में ...
बोलो मेरी प्यारी माँ तुम कहाँ, तुम कहाँ 
इंतजारी है मुझको अब उस रेल की
तुमसे दो घडी का नहीं, जन्म जन्म के मेल की ..





डॉ नूतन गैरोला

Monday, May 9, 2011

खुद से खुद की बातें - डॉ नूतन गैरोला


Monday, March 28, 2011

जल और जलन - Dr Nutan Gairola



जंजाल जी का जबसे जाना मुझे जंजल,
जड़ता से तेरी जला जी का जंगल |
जल कर हम तब जलाशय पर गिरे,
जलन ना गयी जलजला आ गया|
जल में खिले जलज सब जले,
जिया जल का जला, जल, जलजल गया|
जलद उठे जलप्रपात बहे,
अश्रुजलविप्लव से जलधि हो गया |


डॉ नूतन गैरोला - २८ -०३-२०११

Monday, January 10, 2011

मैं - एक नारी - डॉ नूतन गैरोला - १०-०१-२०११


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मैं -
बहुचर्चित
किसी उपन्यास की
सिकुड़ी सिमटी दुःख में डूबी
नायिका नहीं हूँ
मैं |
ना ही 
खाली वक़्त 
समय बिताती सखियों की
चर्चा खास की 
कथा की व्यथा हूँ
मैं |
ना ही खुद
की कलम से
लिखी जाने वाली
दर्द में डूबी कविता हूँ
मैं |
उनकी खुशी
इन सब की खुशी
अपनों की खुशी के लिए
जीने वाली हँसमुख नारी हूँ
मैं  |