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Hope you enjoy reading.
तू कड़क तू है मीठी अलसाई सी है हर सुबह बिन तेरे ....... बिन तेरे एक प्यास अनबुझी सी हर शाम अधूरी सी ...... एक तलब लबों तक आ कर बूझे अंदाज है शौक़ीनों का आवाज हैं चुस्की की ..... डॉ नूतन गैरोला प्रकृति से तो सभी प्रेम करते हैं पर व्यक्तिक तौर पर प्रेम हम किस से करते है - व्यक्ति विशेष, वस्तु विशेष, आदत विशेष, या शौक विशेष से| और चाय के प्रति मेरा अगाध प्रेम है … वैसे भी हम पहाड़ियों को तो ठण्ड में राहत देने के लिए चाय एक शौक ही नहीं एक आदत बन जाती है जिसके बिना अधूरा अधूरा सा लगता है.. |
12 comments:
bhaut hi khubsurat....
बहुत सुन्दर प्रस्तुति ||
बधाई ||
dcgpthravikar.blogspot.com
कल 25/11/2011को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!
चाय की खुस्कियां के बिना रहना मुश्किल है ...
बहुत खूब ...
swadist khushaboo vali chai...man ko bahye..
चाय प्रेम पसंद आया
खूबसूरत रचना...
सोंधी सोंधी चाय की तरह....
सादर बधाई....
अब चलें...चाय पी जाये.
Sounds interesting, might have to take you up on that some other time. supporting your blog! Looking forward to future updates!
From everything is canvas
चाय की तरह ताजगी लिये सुन्दर रचना..
umda prastuti.
चाय के प्रेम में हम आपके साथ हैं |कृपया ये चाय जल्दी जल्दी पिलाया करें ...आप चाय अच्छी बनाती हैं ...!
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