मेरी धरती मेरा आसमां चरणों पे तेरे मैंने शीश झुका लिया था फिसली मैं अगर तो भी गिरी नहीं गिरने से तुने मुझे बचा लिया था धरती ने मुझे गोद में थामा आकाश ने मुझे ऊँगली पकड़ उठा लिया था| . . ये मेरे जमीं आसमां थे ...पर आज सोचती हूँ मैं कहाँ .... . . मैं अपनी धरती पर खड़ी हूँ पर आसमां मेरा नहीं... आसमां को तलाश लेती हूँ तो वहाँ मेरी धरती नहीं ... इस असंतुलन में झूलते झूलते मैं खुद को निहारती हूँ तो पाती हूँ, मैं जो हूँ वो ही मैं नहीं.... . . खो दिया है मैंने खुद को..... . . दुनियादारी की जिम्मेदारियों में ...या सवारने में अपनी रूचियाँ | जिम्मेदारियां अपनों की अपनी जिम्मेदारियों की .. दौड़म दौड़, भागमभाग जाने .. जिंदगी की गाड़ी सुस्ताना चाहती है, रुकना चाहती है ..लेकिन मंथर गति होते ही ठेलम ठेल .. और रूचि, अभिलाषा भी अधिकार ज़माने लगी है ... अपने प्रति जिम्मेदारियां का अहसास जगाने लगी हैं ..... . . सोचती हूँ इन सब को छोड़ कर शांति की खोज में चले जाऊं .... . . शांति तो बाहर भी होगी कहीं और है मन के अंदर भी अब इस शान्ति की खोज में कहाँ जाऊं ... क्या बता सकेगा कोई .. ..कहाँ जाऊं किधर जाऊं .... . .… |
9 comments:
bahut hi acchi prastuti rahi
बहुत सुन्दर ||
मनभावन प्रस्तुति पर बधाई ||
भावों की गहन अभिव्यक्ति ...
han bata sakte hain na.....
karm hi pooja hai....isi me khushi dhoond lo.
khushi milegi to dharti milegi hi...aur jahan dharti milegi ambar apne aap chala aayega. :)
sunder....ati sunder.
मन के भीतर के अंतरदृंद्व को बेहतर तरीके से प्रस्तुत करती रचना।
गहन भाव लिए सुन्दर प्रस्तुति...
सुन्दर रचना.. मन के अंदर शांति हो तो बाहर भी आसानी से मिल जाए.
मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है.
www.belovedlife-santosh.blogspot.com
bahut sundar abhivyakti, badhai.
ओम-वाणी ई-पुस्तक को डाउनलोड करने के लिए इस लिंक को क्लिक करें।
http://dl.dropbox.com/u/36450880/Om%20Vani.pdf
Post a Comment
आप भी कुछ कहें