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Monday, December 20, 2010

शुभकामनाएं - आपको ... नूतन



भाषा की तमाम अशुद्धियों
और व्याकरण की ढेरों गडबडियों के बीच
कुछ सहमे सहमे.
हिंदी में
लिख रहीं हूँ..
सभी भाषाओँ में जनित
भाषाविहीन
दिल की भाषा
सच्ची, शुद्ध, शुभकामना
आरोग्य, दीर्घायु, खुशहाली
यश, कीर्ति, प्रेम के लिए मंगलकामना ...

जन्मदिन मुबारक .. ..



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Sunday, December 19, 2010

मेरे दुश्मन तुझे सलाम

मेरे दुश्मन तुझे सलाम 
मैं  जानती हूँ  तुमने कभी सराहा नहीं मुझे,
मेरी पीड़ा बडती चली और और तडपाया है मुझे |
मैं धन्य  हूँ तेरी के हर प्रताडनाओं से घबराई थी
मगर तेरी प्रताडनाओ ने मजबूत बनाया है मुझे |
मेरी खुशियों  के रंगों में   बदरंग ही दिखा तुझे,
अब  इन रंगों ने इन्द्रधनुष सा रूपहला बनाया है मुझे
मैं संग तेरे चलूंगी तेरा  साया बन रहूंगी पर,
तेरे गुमान ने बेतरतीबी से ठुकराया है मुझे |
जीते जी मैंने खुद को मिट्टी बना डाला था, 
तेरे भरोसे पे ऐतबार  ने मिटा डाला था मुझे

दुनिया से दूर तेरी ओर  हो चली थी मै,
मुझको धकेल तुने ईश्वर की राह पे  पहुँचाया  है  मुझे  |
तेरे  कदम  पर कदम रख चल रही थी मैं,
खुद के निशान न थे इस धरती पे कहीं,
मेरे कदम अब बढ चले है यूं अकेले,
एक एक कदम ने अब पदचिन्ह  बनाया है मेरा  |
रेत में क्या मिटटी पे ही नहीं,
 कठोर पत्थरों पर भी चिन्हित  मेरे निशानों ने,
मेरी    पहचान को बचाया ,अस्तित्व  ही नहीं
 दुनिया के लिए  इक रोशन दीप बनाया है मुझे |
बुझ जाऊंगी  जिस दिन वो दिन आखिरी होगा,
दुवा दूंगी तुझे और  तिमिर को मिटाती जलती  रहूंगी  उम्र भर   ...

 ... नूतन

Monday, November 15, 2010

हम भी कभी बच्चे थे | बाल दिवस के अवसर पर |

बच्चे छल कपट से दूर भगवान का नन्हा रूप है और किसी भी समाज और देश का आधार हैं |आज का बच्चा कल का नागरिक है देश का सूत्रधार है | माँ पिता का सहारा है |  बचपन के इस रूप को ,चिल्ड्रेंस डे - बाल दिवस के रूप में  विश्व भर में अलग अलग तारीखों में मनाया जाता है | इंटरनेशनल – अंतर्राष्ट्रीय बाल दिवस १ जून को, यूनिवर्शल – विश्वव्याप्त बाल दिवस नोवंबर २० तारीख को मनाया जाता है | किन्तु हमारे देश भारत में बाल दिवस बड़ी धूम-धाम से १४ नवम्बर को मनाया जाता है ..कारण.. इस दिन देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरु का जन्मदिन है जो कि बच्चो को बेहद प्यार करते थे और बच्चे भी उनेह बहुत प्रेम और सम्मान देते रहे ..वो बच्चो के प्रिय चाचा नेहरु थे | उनकी मौत के बाद 1963 से उनकी  जयंती  “ बाल दिवस “  के रूप में मनाई  जाती है चाचा नेहरु को हमारी श्रधांजली और बच्चों को प्यार |

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बचपन के संस्मरण

आज बाल दिवस पर मैं अपने बचपन के एक दो किस्से आप सभी से शेयर कर रही हूँ |
 क्यूंकि हम भी कभी बच्चे थे |

 
झूठ के दाग -
 
                    Crying, for a Child in War
बालमन - कही देखा सर्कस में रस्सी पर झूलती लड़की- मैंने चाहा की मै भी उस लड़की के जैसा कारनामा करूँ |तब में LKG में पढ़ती थी | उम्र लगभग तीन साल से चार साल के बीच | माँ ने हम दोनों बहनों को तैयार किया स्कूल जाने के लिए | मेरी कंघी पहले की और छोटी बहन के वो बाल बना ही रही थी कि मै बाहर बरामदे में आ गयी | ८-१० सीढ़ी  नीचे सड़क थी और  बरामदे में एक गोल स्तंभ था | उस स्तंभ के पास खड़ी नीचे सीढियाँ को देख जाने क्यों वो सर्कस के करतब याद आये .. और अपने ऊँगली में मैंने बदरीनाथ भगवान की अंगूठी देखी सोचा क्यों ना इसे खम्बे में अटका कर झूला झूलूँ  जोर जोर से जैसे सर्कस में  हतप्रभ करने वाले करतब देखे, उनकी तरह  | और मैंने अपनी ऊँगली सीधी  की और अंगूठी को खम्बे में फ़साने का जत्न करते हुवे लटक गयी और झूलने लगी - अरे ये क्या ! मै तो धडाम से उचाई से १० सीढ़ी नीचे गिर पड़ी | सीधे सीड़ी के कोने से सर जा टकराया |जाने क्यों दर्द नहीं हुवा मुझे | सड़क पर आते जाते लोग ठिठक गए | और मैंने चाहा दिखाना कि मै कोई छोटी बच्ची नहीं हूँ | सीधे खड़ी हुवी और  सीढ़ी की ओर मुडी |सीढ़ी चढ़ने लगी कि नजर गयी ऊपर वाली सीड़ी पर जहा पर मेरे सर से खून का फव्वारा झड रहा था |माथे के बायीं ओर से तेज खून की  धारा फव्वारे के रूप में निकल रही थी|तब तो चोट की डर नहीं माँ की डांट के डर से सिहरन उठने लगी | दरवाजे से अंदर पहुचते ही माँ ने मेरे चेहरे की जगह बहती खून की धारा देखी तो घबरा गयीं | हाथ से उन्होंने मेरा माथा दबाया पूछा ये क्या हो गया , कैसे हो गया .. बड़े भाईसाहब को आवाज लगाने लगी | एक साफ़ साडी को चीर कर माथे पे पट्टी बाँधी भाईसाहब और माँ ने | छोटी बहन थी घर में और माँ ने किचन में खाना भी चढाया था अतः भैया को आवश्यक हिदायत दे कर खुद मुझे गोद में ले बहुत तेज क़दमों से पास के क्लिनिक, जो की शायद आधा किलोमीटर दूर था ले गयी|
मैं माँ की गोद में थी और मेरा सर माँ के कंधे पर था ,माँ के खुले बालो से टपकता खून मुझे आज भी दिखाई देता है| दौड़ती भागती माँ डॉक्टर के पास पहुची तो डॉक्टर किसी अन्य केस में व्यस्त था  और मेरा इलाज शुरू होने में  देर हो गयी | जब मेरा नंबर आया तो डॉक्टर को टांके मारने /सिलने के लिए सुई ही नहीं मिली | और कहा कि सई लाने तक बच्ची के शरीर से काफी खून बह जायेगा| अतः उन्होंने मेरे घाव की पेकिंग कर दी और ऊपर से पट्टी कर दी | जिसकी वजह से उस समय मेरा खून तो रुक गया पर मेरे माथे पर एक गहरी चोट का निशान रह गया |अब आई पूछताछ की बारी, जब शाम को घर पे पूछा गया कि कैसे गिरी | मेरी गिग्घी बंध गयी| ऐसा लगा कि इस तरह से झूला झुलना और मूर्खता करना अपराध था |जाने कौन सा भय मुझे कचोटने लगा कि मार अब पड़ी तब पड़ी|
          और भय में मैंने अपने को बचाने की एक युक्ति निकली | कह दिया किसी ने मेरा हाथ खिंचा था | ये कहना क्या था कि माँ डर गयी | बोली किसने खिंचा था बता | याद कर | कहने लगे सूरत किस से मिलती जुलती थी | अब तो झूठ  बोल चुकी थी अब बचने की और सूरतें भी खतम हो गई| कह दिया कोई  देखा देखा सा है | पूछा किसके जैसा उस बच्ची ने कहा दूध वाले के बेटे जैसा | बोला कि झूट तो नहीं बोल रही है | वैसे झूठ बोलना आदतों में सुमार ना था| झूट बोला मैंने कांपते दिल से| कुछ कुछ उसके जैसा था | नहीं चाहती थी कि बात आगे बढे पर बात थी कि रुकी नहीं | और उस छोटी बच्ची को अगले दिन दूध वाले के घर ले जाया गया | धुंधली यादें है कि आँगन में उनके बच्चे खड़े थे और मैं माँ से चिपकी रो रही थी अब डर था कि उन बच्चो को मेरी वजह से मार न पड़े | जब जब वो पूछे की पहचानो मैं और डर कर जोर जोर से रोने लगती | आखिरी में दो तीन बच्चो के बीच मैंने कहा कि इनके जैसा था पर ये नहीं और उन बच्चो को भी राहत मिल गयी |
        उस दिन का वो झूठ जो अनायास  बोला, मै जिंदगी भर झूठ बोलने से डर गयी | तीन साल की थी डर ऐसा व्याप्त था कि इसे कभी भुला नहीं सकी | मै खुद को उन बच्चो का गुनाहगार मानती रही और ये सर की चोट सदा याद दिलाती रही हादसे की और आज भी मुझे झूठ से सख्त नफरत है |
 
दीदी का खून पीते तो मोटे होते |

                  imagination
ये जो माथे की चोट का संस्मरण लिखा मैंने, उसी सन्दर्भ में - मेरी छोटी बहन ने ऐसा खून बहते कभी नहीं देखा | शायद डरी होगी, किन्तु रात को जब पिता जी ड्यूटी से घर वापस आये तो माँ ने उन्हें मेरे बारे में बताया | मेरे सर पर लगी चोट देख कर वो बहुत व्यथित और दुखी हुवे | और मुझे गोद में ले कर बैठ गए| तभी छोटी बहन पीछे से दौड़ती हुवी आई और पिता जी पर लिपट गयी | बोली पिता जी | आप दिन में क्यों नहीं आये | दीदी को चोट लगी थी | कितना खून बहा - उसने हाथ फैला कर कहा इत्नाआआ साअराआअ बाल्टी भर के| आप होते तो आप कितना खून पीते और कितने मोते हो जाते | खून पीते ?? पिता जी की एक नाराजी से भरी  थपकी उसके सर पर - याद है
  
 
  मुर्दे की खीर 


               crying_child

बचपन कितना सरल और भोला होता है..झूठ सच नहीं जानता || जिसने जैसा बताया मानता है  | विस्मित होता है किन्तु विश्वास करता है  क्यूंकि उसके लिए दुनिया की हर चीज नयी और विस्मय से भरी होती है |

एक रोज घर में छुट्टी पर पिताजी और सभी   थे | किन्तु दिन में  ( र )भाईसाहब जी, जो कि तब पांच साल के रहे होंगे बाहर खेलने गए |थोड़ी देर बाद किसी बच्चे कि हृदयविदारक चीख और रोने कि आवाज से सब चौंक गए | भाईसाहब (र) रोते हुवे घर आ रहे थे | उनका मुँह खुला का खुला था | पिता जी ने कहा, क्या हुवा ? क्यों रो रहे हो ? किन्तु भाईसाहब और जोर जोर  से रोने लगे - बेहद भयभीत थे और उनका सारा शरीर अकडा हुवा था पिता जी ने जैसे ही  (र) को छुवा वो पैर भी पटकने लगे | सब घबरा गए कि कही सांप ने तो नहीं काटा होगा ? क्या हुवा होगा ? पूछते रहे पर वो सुन भी नहीं रहे थे, अब तो मुँह  भी खुला था और पैर भी पटक रहे थे  और पूरा शरीर ऐंठा जा रहा था और डर से पसीने भी छूट रहे थे - पिताजी ने फिर गुस्से में कहा ( ताकि वो अपनी समस्या के बारे में बताएं ) बोल क्या हुवा | तो (र) के मुंह से एक वाकया फूटा – “ मुर्दे की खीर “ |मुर्दे की खीर जैसे शब् से सभी नावाकिफ  थे , सब घबरा गए - भैया ने बाहर की तरफ इशारा कर के बताया मुर्दे की खीर | बहुतेरी कोशिश की गयी ..लेकिन डर के मारे उनका सरीर अकडा हुवा था बस अब एक ही शब्द बोल कर चिल्ला रहे थे - मुर्दे की खीर - फिर एक जोर की थपकी पडी गाल पे | एक दम भाईसाहब को होश आया | माँ भी बोली की बताओ क्या हुवा क्यों इतना रो रहा है | भाईसाहब ने बाहर इशारा किया मुर्दे की खीर और डर के मारे माँ की गोद में छुप गए जैसे अब मुर्दे की खीर से कोई अनर्थ होने वाला है और चिल्ला रहे थे मुझे बचाओ |
               पिता जी बाहर गए कुछ बच्चे  वहाँ पर भयभीत थे | पिता जी ने उनसे पूछा क्या बात है बच्चो क्यों डर रहे हो | तब एक बच्चा फटी फटी आँखों से बोला अंकल जी अभी यहाँ से एक मुर्दे को उठा कर ले जा रहे थे | लोग उस पर चावल डाल रहे थे |
                   तब पिता जी ने सड़क पर देखा तो बहुत चावल के दाने फैले हुवे थे | चावलों को देख पिता जी ने  कहा तो क्या हुवा चावल के दानो से ? बच्चो ने बताया की एक बहुत बड़े भाईसाहब यहाँ पर खड़े थे उन्होंने कहा की बच्चो ये चावल के दाने मुर्दे की खीर हैं | ये मुर्दे का खाना है | इस लिए इस बात का ख्याल रखना कि इस पर पैर न लगे नहीं तो मुर्दा उस बच्चे को खा जायेगा  | बच्चों ने बताया कि उस समय वो लोग सड़क के उस  पार खड़े थे | सड़क को पार करने के लिए उन्हें बहुत मेहनत करनी पड़ी | एक एक कदम उन्होंने सड़क पर बैठ बैठ कर चावल के दानो को देख कर कर रखा जो कि बहुत कठिन था | किन्तु बेचारे ( र )का पैर एक चावल के दाने पर छू गया था ..उसके साथ रास्ता पार करते उसके दोस्त (म ) ने भी देखा | म चिल्लाया और र घबरा गया वह चीखता हुवा  घर भागा |बच्चे बोले - अंकल  हमने तो सड़क पार कर दी पर र का अब क्या होगा?  पिता जी के हँसते हंसते बुरे हाल हो गए |किन्तु र भाईसाहब को मुर्दे की खीर के भय से आजाद करने में समय लगा |

घटना के समय मैं बहुत छोटी थी | जो सुना वो बताया |

 
बुढ़िया और झोपड़ी

जब मैं बच्ची थी -मेरी बचपन में लिखी एक  एक कविता |


 
               teenage
अरे ! वो जलते दीये
किसने बुझा दिये हैं ?..
वह वृद्धा उस झोपडी में
उस घुप्प अन्धकार में ?
जिसने कल्याण किये हैं ..||
वो अट्टालिका वो इमारते
जगमगाती रोशनी है जिसमे,
असंख्य विद्युत बल्ब हैं , पराया
रक्त चूस कर जिसमें ||
 
वह वृद्धा उस अन्धकार में
उठती कुछ टटोलती |
गोद में ले एक रोग पीड़ित
परोपकार का बच्चा ||
 
उठती वह खांस कर,
कुछ कदम लड़खड़ा कर |
वापस लौट आती है वो
इमारत में झाँक कर ||
 
आज अब वो झोपड़ी
निरंग और सुनसान है |
बुढ़िया का न बच्चे का
उस झोपड़ी में कहीं
नाम और निशान है ||
 
काश !ऐ इमारत वालो तुम में
कुछ दया भाव होता |
तुमने बंद खिड़की को खोल
कुछ प्रकाश पुंज बिखेरा होता |
तो आज इस धरती पर एक
पवित्र आत्मा का तो निवास होता ||
 
द्वारा .. Miss Nutan Dimri / डॉ नूतन गैरोला

Saturday, October 9, 2010

10 / 10/ 10 10:10 after 1000 years...शुभप्रभात ....

देवी चन्द्रघंटा  की पूजा का दिन ..नवरात्र  का तीसरा दिन
और आज सुबह सुबह कोहरे की घनी चादर देख कर विचार आया की अब की बार कितना जाड़ा होगा | 
और आज है तारीख 10 / 10 / 10 ..  1000 साल  बाद  ये  तारीख  आई  है ... और जब होगा 10 / 10/. 10 10:10 a:m  10 / 10/ 10 10:10 p:m ...देखें  क्या ख़ास होता है 
शुभप्रभात .... 
दिन भर में क्या होता है.. रात को देखूंगी.. अरे अब ये ना समझिएगा की रात को देखने का मतलब उल्लूक आँखे .. आज कल तो बहुत सारी रौशनी से चकमकाती चुंधियाती रात होती है ..लेकिन दिन भर का देखने के लिए रात की रोशनी नहीं चाहिए... मन की आँखों से मनन होगा .. क्या अच्छा हुवा क्या बुरा .. समझा जाएगा ... पर कम्प्यूटर में डालने के लिए तो बिजली चाहिए... अब लिखूंगी की क्या क्या हुवा दिन भर 

अब क्या हुवा ..कुछ ख़ास नहीं... रिश्तेदारी  थे..ननद और उनके पतिदेव .. भतीजे भतीजी ( सौरभ और सुच्ची ).. और बहन के परिवार वाले  ( दिप्पी के  जेठ जी घिल्डियाल जी और  साथ   में  देहरादून के अभियंता )तो दिन मिलने मिलाने  में   अच्छा  गुजरा  .. जल्दी में लिखा ..क्यूंकि १२:00 रात्री हो गयी है .. बाई बाई .... स्वागत है नए दिन का  ११ / १० /2010 
Welcome  11 / 10/2010

Friday, October 8, 2010

नवरात्रि पर मंगल कामनाओ के साथ...

प्रथमं शैलपुत्री
जयंती मंगला काली भद्रकाली कपालिनी |
दुर्गाक्षमा शिवाधात्री स्वाहा स्वधा नमोस्तुते ||
हे जयंती, मंगला . काली , भद्रकाली , कपालिनी , दुर्गा. क्षमा , शिवा , धात्री , स्वाहा , स्वधा नामों वाली देवी मेरा आपको नमस्कार |
नवरात्रि पर मंगल कामनाओ के साथ...
आयू रक्षतु  वाराही धर्मं रक्षतु वैस्न्वी | यशः कीर्ति च लक्ष्मीं धनं विद्याम च चक्रिणी ||

आज व्रत है .. सुबह जौ उगाये .. पाठ किया -  नर्सिंग  होम में संतोषजनक काम किया .. सुबह नेट पर ऍफ़ बी खोलते ही कॉल लग गयी थी .. अभी नेट पर हूँ..

Wednesday, October 6, 2010

मासूम सब्जीवाला

टमाटर तो ३० रूपये किलो है इन्होने एक किलो टमाटर लिए है ? इनसे कितने पैसे लूं ?
मै महंगाई की बात नहीं कर रही हूँ - सब्जी बेचने वाले बच्चे की मासूमियत की बात कर रही हूँ जिसको उसके पिता थोड़ी देर के लिए दुकान में बिठा कर और सब्जी के भाव बता कर गए थे.. शाबास शाहबाज - कल का दिन उसके नाम रहा -हँसतें हँसते -- :))



कल ही की बात है | मैं बाजार सब्जी खरीदने गयी यूं तो बाजार मैं  नहीं जाती  चुंकि रास्ते बहुत अधिक बारिश होने से  बंद हो गए है और ४-५ दिन से दूध दही  और सब्जियां  नहीं | सो मैंने निश्चय किया की बाजार में जाकर देखूं की क्या क्या विकल्प है जो सब्जी के स्थान पर काम आ सकते है | शायद एक गाड़ी सब्जी की किसी तरह से बाजार में आई थी और सब्जियों का दाम मन मुताबिक | मैं  अच्छी ताज़ी सब्जी और सही कीमत पर देखने आगे निकल गयी मेरे साथ हमारा ड्राईवर भी था | थोड़ी दूरी एक  जगह सड़क पर साफ़ आलू दिखाई दिए में  रुकी और  देखा एक छोटा बच्चा उम्र करीब ९ साल बैठा है सामने दो टोकरी आलू एक टोकरी टमाटर और एक टोकरी प्याज थे उसके पास | शायद  उसके पिता जी खाना खाने गए थे उसे बैठा के और सब्जी का हिसाब बता के | छोटा बच्चा हमें देख कर थोडा झेपा सा तभी एक  उम्रदार महिला  तेजी से आई और बच्चे को बोली - ओ भैया ! कितने का दे रहा है आलू ? वह बोला ४० रुपया किलो | औरत बोली फिर तू बैठा रह यही और इन  आलूवों चली गयी | मैंने उस औरत को देखा फिर बच्चे को, बच्चा घबराया सा था | 
                                        मै मुस्कुरायी और बोली बेटा टमाटर कितने के दिए | वह बोला ३० रुपया किलो | मैंने बोला एक किलो टमाटर लेने है और और टमाटर छान के उसके तराजू में रख दिए| एक किलो तोल कर उसने लिफ़ाफ़े में डाल दिए | मैंने सौ रूपये का नोट उसकी ओर बढाया| यह देख कर वो बगल की दुकान में बैठे एक  लड़के को, जो कि कोई कहानी पढने में तल्लीन था, कि और मुखातिब हो गया और चिल्लाने लगा भाई साहब, भाई साहब..... भाईसाहब बाजार के हल्ले के बीच में कहानी में खोये हुवे , कुछ सुनाई न दिया और वो भाईसाहब भाईसाहब  चिल्लाता रहा | मैंने कहा तुम  अपने पैसे काट लो  | उसने कहा रुको - फिर उसने जा कर उस लड़के को हिलाया और कहा भाईसाहब भाईसाहब - टमाटर तो ३० रूपये किलो है इन्होने एक किलो  टमाटर लिए है ? इनसे कितने पैसे लूं ? मेरे हँसते हँसते बुरा हाल हो गया की दुकान चलाने बैठा ये बच्चा कीमत तो जानता है, रेट  क्या है पर एक किलो का दाम बताने में असमर्थ है | फल वाला झुंझलाया बोला ३० रूपये | तब मैंने कहा बेटे ३०  रूपये किलो का मतलब एक किलो सब्जी ग्राहक तुम से लेगा  तो ग्राहक से तुमेह ३० रूपये लेना होगा | फिर मैंने कहा एक किलो आलू भी दे दो - आलू कितने  रूपये किलो है ? वह बोला ४० रूपये किलो | तो मैंने कहा एक किलो आलू लुंगी कितना पैसे ओगे - अब कि बार बड़ी समझदारी से बोला ४० रूपये | मै मुस्कुरायी बोली तो हां एक किलो आलू तोल दे |उसने बर्तन  मेरी ओर बढाया | मैंने  अंदाजन एक किलो लिए उसने तोला तो वह जयादा निकला - मैंने सोचा दो किलो तो ले जाने ही थे | फिर मैंने कहा कोई बात नहीं तू डेड किलो तोल ले| लेकिन वो अनसुनी कर आलू तराजू  से नीचे फैंकने लगा |मैंने कहा छोटू तू आधा किलो और ज्यादा तोल दे - ५०० का वाट और बड़ा दे तोल में लेकिन वो चाहता ही नहीं था की उस से कोई एक किलो से जयादा ले... मुझे बच्चे के दिमाग की उथल पुथल समझ आ गयी... वो डरा हुवा था की एक किलो का दाम तो वो जानता है किन्तु ढेड  किलो की कीमत कैसे बताएगा..  मैंने उसकी परेशानी सुलझा दी और उसे बताया की साठ रूपये आलू के अब उसको मैंने देने है... बस अब जब भी सोचती हूँ की मासूम दुकानदार.. उसकी सूरत याद आ रही है.... जो  प्रति किलो टमाटर  की कीमत बता सकता था किन्तु  एक किलो टमाटर  के दाम नहीं बता सकता था .. फिर भी वो अपने पिता की मदद के लिए बैठा था यही बहुत बड़ी बात थी |

Sunday, October 3, 2010

कल और आज लगातार दो दिन गाय्निकोलोजिकल सोसाइटी ऑफ़ इंडिया FOGSI की राज्यस्तरीय कांफेरेंस में बीजी रही | देश विदेश में  मेडिकल फील्ड में हुवे नयी तकनिकी विकास की जानकारी मिली | 
Yesterday , - 2/ oct / 2010 , there were  discussions on ultrasonology n newrer techniques applied in usg for detecting in utero foetal conditions and than m/m,
Dr Prashant Acharya , Dr Anita Kaul Apollo,  Dr P Acharaya, Dr Mandakini Pradhan ( Proff /HOD SG PGI -working on  Medical Genetics and reaserch papers,articles , books published - received  many awards ) , Dr Ashok Khuarna,( Famous Ultrasonologist Director, Senior Fetustician and Consultant in Genitourinary and Vascular Ultrasound and Director at the institute of fertility fulfilment Reaserch, Greater Kailash, ND )

DR T. Patnaik ( Obst and Gynae Of Dehradun ) Dr Harish Bhatiya ( HOD- Medical College Barelly )on the topic birth defects overview, 11-14 weeks scan with chemical markers, preventive Strategies and invasive procedures, Diagnosed Birth defects , what next? understanding Biochemical markers, 2nd trimester USG with soft markers including Doppler Respectively..There was live demo of usg ANC.
I gifted Token of thanks n bouquet  to Dr Ashok Khurana , Dr T. Patnaik. Dr Harish Bhatiya.
मैं डॉ बीना नेगी, डॉ वैष्णवी  पुरोहित , डॉ मैथानी , डॉ रीता गोयल, के संग यादे ताजा .. पुरानी बाते  की डॉ मंजू काला, डॉ मीनू वैश, डॉ अनुधीर, डॉ चौरसिया, डॉ रुक्मणी, डॉ रावल , डॉ मनीषा सिंह , डॉ मंजू  नवानी, डॉ शालिनी सूरी, डॉ अर्चना लूथरा, डॉ प्रोमिला सोरुन्वाला, डॉ आदि से भी मुलाकात हुवी |
 रात्री को केट वाल्क था | महिला डॉ खूब जमें   केट   वाल्क में |  अच्छी रही  केट वाल्क  - बड़ी मुश्किल से डॉ लोग आये |सीनियर डॉ के बेटे और बेटिया भी थी साथ में अपनी माताओं के स्टाइल से हाथ पकड़ कर .. और बच्चो के गाने भी |
किन्तु मन मित्र प की चोट की खबर से दुखी हुवा  |
रात्री को म ( मेरा प्यारा बेटा )अपने मित्र  मयंक के साथ घर पे था

आज :-
आज जल्दी जल्दी नाश्ता  तैयार किया म और उसका मित्र नाश्ता  कर के चले गये.. म हॉस्टल गया | दुःख हुवा पर वो चलता है - क्यूंकि उसका भविष्य है |
Than I reached to the venew where gynae workshop was going ओं..
AIIMS kee gynae $ obs  की HOD Dr Alka kriplani , Apollo ke urogynaecologist DR Ajit Saxena , Bariatric surgeon Apollo Hospital ND Dr Ajay Kripalani , Dr Tapan Bhattacharaya ( H O D Obst $ Gynae deptt SRMS medical College ), Dr Poonam Goel (HOD Govt Medical College Chandiggarh ) Dr Nutan Jain  ( vardhmaan Hospital - Muzaffarnagar ) Dr Jaya Chaturvedi ( HOD HIMS Jolly Grant ) they speak on the topic m/m of congenital mlformation of genital tracts in young girls,  M/m of genital tracts malformations in young girls, current concept of surgical m/m of obesity, experts on prevention of Cervical cancer , recent advances in PIH, laproscopic m/m of extensive Endometriosis and Laprosopic mayomectoy respectively. on 3 /  oct / 2010
They were followed by chairpersons... a big list so i m not mentioning the list :)
लंच कोफेरेंस में ही किया और फिर लेक्चर सुने . कुछ स्टाल से नए वेक्सिनेसन   के बारे में जाना .सर्विकल कैंसर के लिए वेक्सिनेसन का सी डी लिया . .. शाम की चाय  मिस हो गयी .. डॉ रीता गोएल मुझे घर छोड़ने आयीं .. घर में आज कोई नहीं .. अकेलापन .. बेटा भी आज ही तो हॉस्टल गया .. मन तो लगाना है .. चलिए  देखती हूँ काम करने की क्या क्या गुन्जाईस है .. किचेन आदि .. क्या क्या बनाया जा सकता है डिनर  में .. सोचती हूँ जल्दी सो जाऊं ..पर नींद आये तो...




Wednesday, September 29, 2010

On the Path of Memories -- Dr Nutan (NiTi)


I walk... walk on the lane of memories...
Empire of the past with narrow courtyards.
There a lawn, a home, and a backyard,


A faded mirror with misty surface,
Wiping it out with joy and fear.
Entering in the black hole back by years,
Childhood laughing, obstinate and tears.

Warbling of birds and buzzing of bees
Whispers of parents upbringing me.
Dreams of Ghosts and fairytales indeed,
Patting by mom with eternal love and peace.

Loving sister and caring  brother.
Teaching of mother  and wishes of father.
Going to school and enjoying the day,
Games, dramas and sports I played,
Gossiping with friends and studying I praised.

Deep in the books I found the world,
The body parts, diseases and becoming expert,
My medical studies and service for mankind
Was the only aim  that i kept in my mind.
I kept pace with honesty in the life’s race
Was a student and a mother with grace.
Gift of god – a prince like son
And daughter  like an angel n having fun.

My days in clinic and duties at night

Effort to have victory, and disease to fight
To make people healthy, positive with a smile...
Mistakes..alas..there were some that i made,
Learnt my lessons, thats all that i had
they paved way for all the success.
Ah! How were the experiences,the laugh and cry?
Sunny day’s sky with breeze and kite. 
Tranquil, soothing sleep to restless night.
Sweet and sour, black and white,
Dashing of disasters and rainbow delight.

I walked on a time line, expanding my past,
Gifts of memories are deep and vast.
Going with the wind, like a bird trying to fly
Till my blissful soul ,meets the supreme high...
Written by Dr Nutan  30/09/2010 .. 1:22  AM