मेरे दुश्मन तुझे सलाम
मैं जानती हूँ तुमने कभी सराहा नहीं मुझे,
मेरी पीड़ा बडती चली और और तडपाया है मुझे |
मैं धन्य हूँ तेरी के हर प्रताडनाओं से घबराई थी
मगर तेरी प्रताडनाओ ने मजबूत बनाया है मुझे |
मेरी खुशियों के रंगों में बदरंग ही दिखा तुझे,
अब इन रंगों ने इन्द्रधनुष सा रूपहला बनाया है मुझे
मैं संग तेरे चलूंगी तेरा साया बन रहूंगी पर,
तेरे गुमान ने बेतरतीबी से ठुकराया है मुझे |
जीते जी मैंने खुद को मिट्टी बना डाला था,
तेरे भरोसे पे ऐतबार ने मिटा डाला था मुझे
दुनिया से दूर तेरी ओर हो चली थी मै,
मुझको धकेल तुने ईश्वर की राह पे पहुँचाया है मुझे |
तेरे कदम पर कदम रख चल रही थी मैं,
खुद के निशान न थे इस धरती पे कहीं,
मेरे कदम अब बढ चले है यूं अकेले,
एक एक कदम ने अब पदचिन्ह बनाया है मेरा |
रेत में क्या मिटटी पे ही नहीं,
कठोर पत्थरों पर भी चिन्हित मेरे निशानों ने,
मेरी पहचान को बचाया ,अस्तित्व ही नहीं
दुनिया के लिए इक रोशन दीप बनाया है मुझे |
बुझ जाऊंगी जिस दिन वो दिन आखिरी होगा,
दुवा दूंगी तुझे और तिमिर को मिटाती जलती रहूंगी उम्र भर ...
... नूतन
9 comments:
nutan bahan bht bhut bhtrin rchna mubark ho . akhar khan akela kota rajsthan
कितनी पीडा..असह्य वेदना....सहनशक्ति की पराकाष्ठा!..नूतनजी!..आपने कैसे इसे कविता में पिरोया है!...प्रशंसनीय रचना!
बहुत सुंदर टेम्प्लेट है।
इस रचना ने दिल को छुआ!
कठिन परिस्थितियां इंसान को मजबूत बना देती हैं ...अच्छी प्रस्तुति .
कृपया वर्ड वेरिफिकेशन हटा लें ...टिप्पणीकर्ता को सरलता होगी ...
वर्ड वेरिफिकेशन हटाने के लिए
डैशबोर्ड > सेटिंग्स > कमेंट्स > वर्ड वेरिफिकेशन को नो करें ..सेव करें ..बस हो गया .
दिल को लगी आपकी ये रचना. बहुत सुन्दर, भावपूर्ण.
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पंख, आबिदा और खुदा
कल 03/04/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल (विभा रानी श्रीवास्तव जी की प्रस्तुति में) पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!
दुवा दूंगी तुझे और तिमिर को मिटाती जलती रहूंगी उम्र भर ....
अलग ही धरातल की उत्तम रचना....
सादर।
komal bhavon mein saji rachna ...
मैं संग तेरे चलूंगी तेरा साया बन रहूंगी पर,
तेरे गुमान ने बेतरतीबी से ठुकराया है मुझे |
जीते जी मैंने खुद को मिट्टी बना डाला था,
तेरे भरोसे पे ऐतबार ने मिटा डाला था मुझे.... खुबसूरत अल्फाजों में पिरोये जज़्बात...
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