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Wednesday, October 6, 2010

मासूम सब्जीवाला

टमाटर तो ३० रूपये किलो है इन्होने एक किलो टमाटर लिए है ? इनसे कितने पैसे लूं ?
मै महंगाई की बात नहीं कर रही हूँ - सब्जी बेचने वाले बच्चे की मासूमियत की बात कर रही हूँ जिसको उसके पिता थोड़ी देर के लिए दुकान में बिठा कर और सब्जी के भाव बता कर गए थे.. शाबास शाहबाज - कल का दिन उसके नाम रहा -हँसतें हँसते -- :))



कल ही की बात है | मैं बाजार सब्जी खरीदने गयी यूं तो बाजार मैं  नहीं जाती  चुंकि रास्ते बहुत अधिक बारिश होने से  बंद हो गए है और ४-५ दिन से दूध दही  और सब्जियां  नहीं | सो मैंने निश्चय किया की बाजार में जाकर देखूं की क्या क्या विकल्प है जो सब्जी के स्थान पर काम आ सकते है | शायद एक गाड़ी सब्जी की किसी तरह से बाजार में आई थी और सब्जियों का दाम मन मुताबिक | मैं  अच्छी ताज़ी सब्जी और सही कीमत पर देखने आगे निकल गयी मेरे साथ हमारा ड्राईवर भी था | थोड़ी दूरी एक  जगह सड़क पर साफ़ आलू दिखाई दिए में  रुकी और  देखा एक छोटा बच्चा उम्र करीब ९ साल बैठा है सामने दो टोकरी आलू एक टोकरी टमाटर और एक टोकरी प्याज थे उसके पास | शायद  उसके पिता जी खाना खाने गए थे उसे बैठा के और सब्जी का हिसाब बता के | छोटा बच्चा हमें देख कर थोडा झेपा सा तभी एक  उम्रदार महिला  तेजी से आई और बच्चे को बोली - ओ भैया ! कितने का दे रहा है आलू ? वह बोला ४० रुपया किलो | औरत बोली फिर तू बैठा रह यही और इन  आलूवों चली गयी | मैंने उस औरत को देखा फिर बच्चे को, बच्चा घबराया सा था | 
                                        मै मुस्कुरायी और बोली बेटा टमाटर कितने के दिए | वह बोला ३० रुपया किलो | मैंने बोला एक किलो टमाटर लेने है और और टमाटर छान के उसके तराजू में रख दिए| एक किलो तोल कर उसने लिफ़ाफ़े में डाल दिए | मैंने सौ रूपये का नोट उसकी ओर बढाया| यह देख कर वो बगल की दुकान में बैठे एक  लड़के को, जो कि कोई कहानी पढने में तल्लीन था, कि और मुखातिब हो गया और चिल्लाने लगा भाई साहब, भाई साहब..... भाईसाहब बाजार के हल्ले के बीच में कहानी में खोये हुवे , कुछ सुनाई न दिया और वो भाईसाहब भाईसाहब  चिल्लाता रहा | मैंने कहा तुम  अपने पैसे काट लो  | उसने कहा रुको - फिर उसने जा कर उस लड़के को हिलाया और कहा भाईसाहब भाईसाहब - टमाटर तो ३० रूपये किलो है इन्होने एक किलो  टमाटर लिए है ? इनसे कितने पैसे लूं ? मेरे हँसते हँसते बुरा हाल हो गया की दुकान चलाने बैठा ये बच्चा कीमत तो जानता है, रेट  क्या है पर एक किलो का दाम बताने में असमर्थ है | फल वाला झुंझलाया बोला ३० रूपये | तब मैंने कहा बेटे ३०  रूपये किलो का मतलब एक किलो सब्जी ग्राहक तुम से लेगा  तो ग्राहक से तुमेह ३० रूपये लेना होगा | फिर मैंने कहा एक किलो आलू भी दे दो - आलू कितने  रूपये किलो है ? वह बोला ४० रूपये किलो | तो मैंने कहा एक किलो आलू लुंगी कितना पैसे ओगे - अब कि बार बड़ी समझदारी से बोला ४० रूपये | मै मुस्कुरायी बोली तो हां एक किलो आलू तोल दे |उसने बर्तन  मेरी ओर बढाया | मैंने  अंदाजन एक किलो लिए उसने तोला तो वह जयादा निकला - मैंने सोचा दो किलो तो ले जाने ही थे | फिर मैंने कहा कोई बात नहीं तू डेड किलो तोल ले| लेकिन वो अनसुनी कर आलू तराजू  से नीचे फैंकने लगा |मैंने कहा छोटू तू आधा किलो और ज्यादा तोल दे - ५०० का वाट और बड़ा दे तोल में लेकिन वो चाहता ही नहीं था की उस से कोई एक किलो से जयादा ले... मुझे बच्चे के दिमाग की उथल पुथल समझ आ गयी... वो डरा हुवा था की एक किलो का दाम तो वो जानता है किन्तु ढेड  किलो की कीमत कैसे बताएगा..  मैंने उसकी परेशानी सुलझा दी और उसे बताया की साठ रूपये आलू के अब उसको मैंने देने है... बस अब जब भी सोचती हूँ की मासूम दुकानदार.. उसकी सूरत याद आ रही है.... जो  प्रति किलो टमाटर  की कीमत बता सकता था किन्तु  एक किलो टमाटर  के दाम नहीं बता सकता था .. फिर भी वो अपने पिता की मदद के लिए बैठा था यही बहुत बड़ी बात थी |

10 comments:

मनोज कुमार said...

एक भावपूर्ण संस्मरण।

डॉ. नूतन डिमरी गैरोला- नीति said...

Dhanyvaad manoj ji...

Kunwar Kusumesh said...

यह मार्मिक संस्मरण एक लघुकथा का रूप ले सकता है.
मुझे हंसी नहीं बल्कि उस बच्चे पर दया आई.अच्छी प्रस्तुति .

कुँवर कुसुमेश
समय हो तो कृपया मेरे ब्लॉग:kunwarkusumesh.blogspot.com पर नई पोस्ट देखें.

Arvind Mishra said...

मासूम सा संस्मरण -पर आलू ४० रूपये किलो कहाँ मिल रहा है ?

डॉ. नूतन डिमरी गैरोला- नीति said...

ji aaloo yaha pahaado me... sir aaloo hi nahi..abhi baad ke samay tamaatar 100 rupye kilo bhi huva.. ascharyaa naa kariyega.. sabji doodh paani bijli aur newsppaper durlab hee nahi balki bilkul hee gayab rahe.. kyoonki raaste aur communication ke har saadhan toot gaye they...

डॉ. नूतन डिमरी गैरोला- नीति said...

Dhanyvaad kanwar ji.. aapne sahi kaha..

www.navincchaturvedi.blogspot.com said...

नूतन जी हमारे आस पास के साधारण विषय पर असाधारण प्रस्तुति है ये| आपकी सोच, विषय चुनाव, शब्द संयोजन और अन्दाजेबयाँ ग़ज़ब का लगा नूतन जी| बधाई|

Yashwant R. B. Mathur said...

कल 29/08/2011 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!

Vandana Ramasingh said...

मासूमियत हमारे आसपास अब भी रहती है पर हम अपनी उलझनों में उसे देख ही नहीं पाते आपने खूबसूरती से दर्शन कराया ..शुक्रिया

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

रोचक और भावपूर्ण घटना ..

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