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तू कड़क तू है मीठी अलसाई सी है हर सुबह बिन तेरे ....... बिन तेरे एक प्यास अनबुझी सी हर शाम अधूरी सी ...... एक तलब लबों तक आ कर बूझे अंदाज है शौक़ीनों का आवाज हैं चुस्की की ..... डॉ नूतन गैरोला प्रकृति से तो सभी प्रेम करते हैं पर व्यक्तिक तौर पर प्रेम हम किस से करते है - व्यक्ति विशेष, वस्तु विशेष, आदत विशेष, या शौक विशेष से| और चाय के प्रति मेरा अगाध प्रेम है … वैसे भी हम पहाड़ियों को तो ठण्ड में राहत देने के लिए चाय एक शौक ही नहीं एक आदत बन जाती है जिसके बिना अधूरा अधूरा सा लगता है.. |